ओ मज़ालिम!!!
जो जीता रहा था खातिर तेरी, क्युं अब उसे जीना बिना तेरे, ओ मज़ालिम..., ओ मज़ालिम... जीसे इश्क में दिल दुबाया तेरे, क्युं अब उसे कहि और दुबाना. ओ मज़ालिम..., ओ मज़ालिम... चाह की बातोंमैं वो फ़साने तेरे शगुफ़्ता शगुफ़्ता वो बहाने तेरे. बस रहा इक दिल-ए-तन्हा मेरा, जो बातो का [...]
Great_linesofficial says:
sejal ramanuj says:
Harshad says: